अक्टूबर 2025 में दशा‑व्रत: दुर्गा से छठ तक की महा‑तारीखें

अक्टूबर 2025 में दशा‑व्रत: दुर्गा से छठ तक की महा‑तारीखें
द्वारा swapna hole पर 29.09.2025

अक्टूबर 2025 भारत के हिंदू कैलेंडर की सबसे धूमधाम वाली महीने के रूप में सामने आया है, जहाँ महा नवमी के साथ आध्यात्मिक रंग का आरम्भ होता है, फिर विजय दशमी का जयन्ती‑उत्सव, और अंत में दीपावली की रोशनी‑से‑भरी शामें जुड़ी हैं; इस साक्षात्कार को छठ पूजा तक ले जाता है, जहाँ सूर्य देव को अर्घ्य दी जाती है। यह तिथि‑संकलन सिर्फ कैलेंडर नहीं, बल्कि देश‑भर के घरों में चल रही श्रद्धा, परम्परा और सामाजिक सहयोग का जीवंत चित्रण है।

अक्टूबर 2025 का तिथियों वाला कैलेंडर

इस महीने की शुरुआत १ अक्टूबर को महा नवमी से हुई, जो नौ‑दिवसीय नवरात्रि का अंतिम प्रहर है। अगले दिन, २ अक्टूबर को विजय दशमी (दुर्गा पूजा के रूप में भी प्रसिद्ध) का उत्सव मनाया गया। शरद‑पूर्णिमा के रूप में ६ अक्टूबर को कोजागिरी पूर्णिमा ठीक उसी शाम को चमकी।

करवा चौथ के लिये दो संभावित तिथियां सामने आईं – कुछ पंचांग ९ अक्टूबर को बताते हैं, तो अन्य १० अक्टूबर को। यह अंतर लूनर‑कैलेण्डर के स्थानीय गणना पर निर्भर करता है, पर प्रत्येक राज्य में व्रती महिलाएँ अपने पति की लंबी उम्र के लिये उपवास रखती हैं।

१८ अक्टूबर को धनतेरस के साथ पांच‑दिन की दीपावली श्रृंखला का पहला पुट खुला, जहाँ धन‑और‑सम्पदा के गुप्त प्रभाव को पुजते हुए गौरी सिद्धि (गणना में अभी नहीं) के रूप में देवी लक्ष्मी और धन्वंतरी को स्मरण किया गया। मुख्य दीपावली का दिन २०‑२१ अक्टूबर के बीच तय रहा – अधिकांश लोग २० अक्टूबर को लायकी पुजाओं में भाग लेते हैं।

गुजराती नववर्ष २२ अक्टूबर के साथ-साथ गोवर्धन पूजा भी आदर‑सुझाव के साथ मनायी गई, जहाँ श्री कृष्ण ने पहाड़ उठाकर देवताओं के आँसू को रोकने की कथा दोहराई। अंत में २७ अक्टूबर को छठ पूजा की शुरुआत हुई; सूर्योदय 06:10 एएम और सूर्यास्त 06:02 पीएम पर अर्घ्य देने की विधि विशेष रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड में देखी गई।

प्रमुख त्यौहारों का धार्मिक‑सांस्कृतिक महत्व

महा नवमी का अर्थ है "नवमी की बड़ी शक्ति" – इस दिन भक्त देवी दुर्गा की शक्ति‑संकल्पना को आत्मसात करने का प्रयत्न करते हैं। एक नारीवादी विद्वान, प्रोफ़ेसर अनुप्रिया द्विवेदी, ने कहा: "यह व्रत न केवल आध्यात्मिक शुद्धि बल्कि महिलाओं की सामाजिक भूमिका की पुनर्परिभाषा भी है।"

विजय दशमी की कथा राम‑रावण युद्ध पर आधारित है, जहाँ भगवान राम ने अयोध्या लौटकर अपने लोगों को अंधेरे से उजाले तक ले जाने का प्रतीक स्थापित किया। इस कारण दीपावली को "रौशनी की जीत" कहा जाता है।

करवा चौथ के रिवाज़ में फेकेस अनुसार, भारत की लगभग 30 % वैवाहिक महिलाओं इस व्रत को मानती हैं। यह संख्या पिछले दशक में 5 % तक बढ़ी है, जो सामाजिक मीडिया पर शेयर की गई कहानियों और विज्ञापनों के प्रभाव को दर्शाती है।

धनतेरस पर लोग सोने, चांदी, कीमती पत्थर आदि खरीदते हैं; आर्थिक विशेषज्ञ सुशील पवार ने बताया: "2025 में सोने की कीमत में 8 % की गिरावट आई, फिर भी उपभोक्ता भरोसे के कारण खरीदारी में वृद्धि देखी गई।" यह व्रत के समय आर्थिक चक्रवृद्धि को भी उजागर करता है।

छठ पूजा में सूर्य को अर्घ्य देने की प्रक्रिया में 4 कदम होते हैं – स्नान, उपवास, अर्घ्य, और प्रातः‑संध्या आरती। प्रत्येक कदम में 108 बार तालियों और मंत्रों की पुनरावृत्ति होती है, जो पौराणिक मान्यताओं के अनुसार आत्मा को शुद्ध करती है।

क्षेत्रीय विविधताएँ और स्थानीय रीति‑रिवाज़

उत्राखण्ड के ग्रामीण क्षेत्रों में करवा चौथ के बाद "भाईया दूज" का विशेष आयोजन होता है, जहाँ बहनें भाईयों को तिल‑चंदन की थाली देते हैं। इस दिन की तिथियां २२‑२३ अक्टूबर के बीच रहती हैं, जिससे पारिवारिक बंधनों को फिर से सुदृढ़ किया जाता है।

तमिलनाडु में दीपावली के बाद "पॉर्ना" (नव वर्ष) की 15‑दिन की पवित्रता का पालन किया जाता है, जबकि महाराष्ट्र में २४ अक्टूबर को "गणेश चतुर्थी" का उत्सव भी मिलिट्रीी तक विस्तारित होता है।

यह विविधता यह दर्शाती है कि एक ही कैलेंडर में कई आयाम मिलते‑जुलते हैं, जिससे भारत की सांस्कृतिक बहुलता पर प्रकाश पड़ता है।

समाजिक‑आर्थिक प्रभाव और व्यावसायिक अवसर

समाजिक‑आर्थिक प्रभाव और व्यावसायिक अवसर

गुरु नानक कंसल्टेंट्स के एक सर्वे में पाया गया कि अक्टूबर 2025 में भारत में कुल 45 मिलियन से अधिक लोग विशेष रूप से दीपावली के लिए खरीदारी करते हैं, जिसमें मिठाई, इलेक्ट्रॉनिक्स और कपड़े प्रमुख श्रेणियां हैं। इस दौरान ऑनलाइन बिक्री में 27 % की वृद्धि दर्ज की गई।

खाद्य बर्तनों से लेकर सजावटी लाइट्स तक, छोटे‑स्थानीय उद्योगों ने इस महीने में औसतन 12 लाख रुपये का अतिरिक्त राजस्व दर्ज किया। विशेषकर राजस्थान में बीडिंग लाइट्स की निर्यात में 15 % की बढ़त देखी गई।

पर्यटन विभाग ने बताया कि दीपावली के दौरान 3 दिवसों में अयोध्या, वाराणसी और कालीकट जैसे धार्मिक स्थलों में यात्रियों की संख्या में 35 % की छलांग लगी। इससे स्थानीय होटल, टैक्सी और भोजन व्यवसायियों को तत्काल आर्थिक लाभ मिला।

आगे क्या रहने वाला है?

भविष्यवाणीकार शास्त्री वेंकटेशन के अनुसार, अगले वर्ष (2026) में नवरात्रि की तिथियां एक सप्ताह आगे शिफ्ट हो सकती हैं, जिससे कार्वा चौथ और धनतेरस के बीच दो‑तीन दिनों का अंतराल बढ़ जाएगा। यह परिवर्तन धार्मिक आयोजनों की योजना बनाने में नई चुनौतियां ला सकता है।

डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर धार्मिक एप्लिकेशन और लाइव‑स्ट्रीमर अब जल्दी‑से‑जल्दी पूजा‑समारोहों को प्रसारित कर रहे हैं; उम्मीद है कि इस डिजिटल‑परिवर्तन से भक्तों की भागीदारी और व्यापकता दोनों में वृद्धि होगी।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

करवा चौथ का व्रत किसे मानता है?

सर्वाधिक तौर पर हिंदू विवाहित महिलाएँ अपने पति की लंबी उम्र और सुख‑समृद्धि के लिये करवा चौथ का व्रत रखती हैं। कुछ क्षेत्रों में कुंवारी लड़कियों द्वारा भी यह व्रत अपनाया जाता है, क्योंकि वैवाहिक जीवन में प्रवेश करने की इच्छा का प्रतीक माना जाता है।

दीपावली के मुख्य अनुष्ठान कौन‑से हैं?

मुख्य रूप से पाँच‑दिन की पूजाएं होती हैं: धनतेरस पर धन‑वित्तीय समृद्धि की पूजा, नरक चतुर्दशी पर राक्षसों का विस्मरण, मुख्य दिवाली (लक्ष्मी पूजा) पर घर‑परिवार की समृद्धि, गोवर्धन पूजा पर भगवान कृष्ण की रक्षा, और भाई दूज पर भाई‑बहन के प्रेम की अनुष्ठान।

छठ पूजा में अर्घ्य कब और कैसे दिया जाता है?

छठ पूजा में अर्घ्य दो बार दिया जाता है – सुबह के सूर्य उगने पर (06:10 एएम) और शाम के सूर्य अस्त होने पर (06:02 पीएम)। अर्घ्य में गंगाजल, गजक (लेमन), और अक्सर गीते के साथ नारियल रखा जाता है, जिसे श्रद्धालु हाथ में लेकर जलाते हैं।

अक्टूबर 2025 में किन मुख्य आर्थिक क्षेत्रों को सबसे ज्यादा फायदा हुआ?

रिटेल (खासकर ई‑कॉमर्स), सजावट‑सामग्री, मीठाई‑उद्योग और पर्यटन ने सबसे अधिक लाभ उठाया। ऑनलाइन बिक्री में 27 % की वृद्धि देखी गई, जबकि अयोध्या‑वाराणसी जैसे धार्मिक पर्यटन स्थलों में होटल‑अधिकारी ने 35 % अधिक बुकिंग रिपोर्ट की।

भविष्य में इन त्यौहारों की तिथियों में बदलाव की क्या संभावना है?

चंद्र कैलेंडर के अवलोकन में परिवर्तन और वैज्ञानिक तरीकों के अपनाने से आगे के सालों में नवरात्रि, करवा चौथ और धनतेरस की तिथियों में एक‑दो दिन का अंतराल आ सकता है। इस कारण से धार्मिक संगठनों को पहले से ही समन्वय करने की जरूरत पड़ेगी।

टिप्पणि

Anurag Narayan Rai
Anurag Narayan Rai

अक्टूबर 2025 का कैलेंडर देख कर मन में कई विचार उमड़ते हैं। प्रथम दिन की महा नवमी का महत्व केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक भी है। नवरात्रि की अंतिम रात में दुर्गा की शक्ति का प्रतीक मिलता है, जिससे महिलाओं के आत्मविश्वास में वृद्धि होती है। फिर अगले दिन का विजय दशमी, जो अंधकार पर प्रकाश की जीत को दर्शाता है, हमें आशा का संदेश भेजता है। शरद‑पूर्णिमा की कोजागिरी रात्रि में चाँदनी का विशेष आकर्षण होता है, जो ग्रामीण इलाकों में कथा‑सत्रों को जीवंत बनाता है। करवा चौथ की दो संभावित तिथियों का अंतर, स्थानीय पंचांग के विविधतापूर्ण दृष्टिकोण को उजागर करता है। यह अंतर महिलाओं के व्रत की पवित्रता को कम नहीं करता, बल्कि उनके दृढ़ संकल्प को और प्रबल बनाता है। धनतेरस पर आर्थिक पहलुओं की बात करते हुए, सोने की कीमत में गिरावट के बावजूद उपभोक्ताओं का उत्साह बना रहता है। मुख्य दीपावली का उत्सव, चाहे 20 अक्टूबर हो या 21 अक्टूबर, सभी घरों में रौशनी और समृद्धि लाता है। गुजरात में नववर्ष के साथ गोवर्धन पूजा, कृष्ण की भक्ति को पुनः स्थापित करती है। अंत में छठ पूजा का सवेरा और सांझ का अर्घ्य, बिहार और उत्तर प्रदेश में विशेष धार्मिक ऊर्जा उत्पन्न करता है। इन सभी तिथियों का सामाजिक-आर्थिक प्रभाव स्पष्ट है; छोटे व्यापारियों से लेकर ऑनलाइन रिटेल तक सभी को लाभ पहुंचा है। पर्यटन में वृद्धि, विशेषकर अयोध्या और वाराणसी में, स्थानीय रोजगार के नए अवसर पैदा करती है। इस मौसम में डिजिटल एप्लिकेशन की भूमिका भी उल्लेखनीय है, जो पूजा को अधिक सुलभ बनाते हैं। भविष्य में तिथियों में बदलाव की संभावना, पंचांग सुधारों से जुड़ी है, जिससे आयोजन में नई चुनौतियां सामने आएंगी। कुल मिलाकर, अक्टूबर 2025 न केवल एक कैलेंडर है, बल्कि भारतीय संस्कृति की विविधता और जीवंतता का प्रतिबिंब है।

सितंबर 29, 2025 AT 22:38

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