विवाद कैसे भड़का, किसने क्या कहा
सोशल मीडिया पर एक पोस्ट, 40 घंटे तक लाइव, 34 हजार व्यू—और फिर देश की सियासत में तूफान. CSDS (Centre for the Study of Developing Societies) के चुनाव विश्लेषक और लोकनीति-सीएसडीएस के सह-निदेशक संजय कुमार ने 17 अगस्त को एक्स पर एक ग्राफ/डेटा साझा किया, जिसमें दावा था कि महाराष्ट्र की दो विधानसभा सीटों—नाशिक वेस्ट और हिंगणा—में 2024 लोकसभा और 2024 विधानसभा के बीच मतदाताओं की संख्या में क्रमश: 47% और 43% की ‘उछाल’ दिख रही है.
कांग्रेस नेताओं ने इसे तुरंत पकड़ा. राहुल गांधी ने इसे ‘वोट चोरी’ की कहानी का सबूत बताते हुए चुनाव आयोग पर मिलभगत के आरोप दोहराए. इससे ठीक पहले, 7 अगस्त को उन्होंने कर्नाटक के महादेवपुरा का एक डेटा साझा कर चुनाव में गड़बड़ी का सवाल उठाया था. उधर 17 अगस्त को ही चीफ इलेक्शन कमिश्नर ज्ञानेश कुमार ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में बिना नाम लिए ‘वोट चोरी’ के आरोपों को खारिज किया था. इसी पृष्ठभूमि में संजय कुमार की पोस्ट ने आग में घी का काम किया.
लेकिन 19 अगस्त को संजय कुमार ने सार्वजनिक माफी मांगते हुए वह पोस्ट डिलीट कर दी. उनका साफ कहना था—2024 लोकसभा और 2024 विधानसभा के डेटा की तुलना में गलती हुई, डेटा की पंक्ति गलत पढ़ ली गई, ग़लतफ़हमी फैलाने का कोई इरादा नहीं था. पोस्ट हट गई, पर तब तक यह कई बड़े नेताओं के टाइमलाइन पर प्रमोट हो चुकी थी.
यहीं से BJP ने कड़ा पलटवार शुरू किया. पार्टी प्रवक्ता गौरव भाटिया ने इसे “खतरनाक खेल” कहा और आरोप लगाया कि CSDS नेताओं के हाथ की कठपुतली बन गया है. IT सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने इसे “कन्फर्मेशन बायस” बताया—यानि पहले निष्कर्ष बना लेना और उसी के हिसाब से डेटा चुनना—और राहुल गांधी से माफी की मांग की. BJP ने यह भी सवाल उठाया कि इतनी संवेदनशील पोस्ट 40 घंटे तक ऑनलाइन रही और इसी दौरान कई कांग्रेस नेताओं, जिनमें पवन खेड़ा भी शामिल थे, ने इसे प्रचारित किया और बाद में अपने ट्वीट हटाए.
इसी बीच, भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICSSR)—जो CSDS को फंड करता है—ने संगठन को कारण बताओ नोटिस जारी किया है. नोटिस में डिलीट हुई पोस्ट पर स्पष्टीकरण मांगा गया है और संकेत दिया गया है कि आगे कार्रवाई संभव है. चुनाव आयोग ने भी संज्ञान लिया और कहा कि संजय कुमार ने माफी मांगी है, जबकि उसी गलत डेटा के सहारे कई नेताओं ने आयोग पर सवाल उठाए. कुछ वरिष्ठ कानूनी विशेषज्ञों ने यह कहते हुए कार्रवाई की मांग की है कि ऐसी पोस्टें संवैधानिक संस्थाओं में जनता के भरोसे को चोट पहुंचाती हैं.
डेटा में गलती कैसे हो सकती है? असर क्या पड़ता है
सवाल यह है कि एक अनुभवी चुनाव विश्लेषक से ऐसी चूक कैसे हुई? संजय कुमार ने ‘रो-रीडिंग’ एरर यानी पंक्ति गलत पढ़ने का जिक्र किया है, पर तकनीकी स्तर पर कुछ आम गफलतें होती हैं जो ऐसे विवादों को जन्म देती हैं:
- लोकसभा बनाम विधानसभा का भू-गणित: एक लोकसभा सीट में कई विधानसभा क्षेत्र आते हैं. सीधे-सीधे दोनों के कुल ‘इलेक्टर्स’ की तुलना कर दी जाए, तो गलत निष्कर्ष निकल सकते हैं.
- इलेक्टर्स बनाम वोट पोल्ड: मतदाता सूची में दर्ज कुल नाम (इलेक्टर्स) और वास्तव में पड़े वोट (टर्नआउट) अलग चीजें हैं. दोनों को गड़बड़ा देने से प्रतिशत उछाल-गिरावट अजीब दिख सकती है.
- ड्राफ्ट रोल बनाम फाइनल रोल: कई बार विश्लेषण के लिए इस्तेमाल हुआ डेटा ड्राफ्ट या इंटरिम सूची से आता है, जबकि आधिकारिक तुलना फाइनल रोल से होनी चाहिए.
- भौगोलिक सीमाएं और अद्यतन: बूथ-मर्जिंग, नए बूथ, शहरी-ग्रामीण माइग्रेशन, डुप्लीकेट हटना या नए पंजीकरण—इन सब से संख्या बदलती है, पर 40% से ऊपर की छलांग असामान्य मानी जाती है और उसे क्रॉस-चेक की जरूरत होती है.
कांग्रेस का तर्क है कि असंगत आंकड़े अगर बार-बार दिखते हैं, तो चुनाव आयोग को सिस्टम-ऑडिट कर पारदर्शिता बढ़ानी चाहिए. पार्टी ने यह लाइन पहले भी कर्नाटक के महादेवपुरा के संदर्भ में ली थी. BJP का जवाब है—आरोपों का आधार कमजोर है, और सोशल मीडिया पर शोर मचाकर संस्थाओं की साख पर चोट करना राजनीतिक रणनीति का हिस्सा बन गया है.
यह विवाद चुनावी विमर्श को दो मोर्चों पर चुनौती देता है. पहला, डेटा साक्षरता: रिसर्च बॉडी, मीडिया और राजनीतिक दल—तीनों के लिए सख्त वेरिफिकेशन प्रोटोकॉल जरूरी हैं. जो भी संख्या सामने आए, उसे कम से कम दो स्वतंत्र स्रोतों या आधिकारिक दस्तावेजों से मिलान करना मानक प्रक्रिया होनी चाहिए. दूसरा, डिजिटल प्रसार: 40 घंटे में 34 हजार व्यू बहुत बड़े नहीं लगते, पर जब वही पोस्ट बड़े नेताओं के अकाउंट से घूमती है, तो धारणा बनती है और बाद की सफाई उतनी दूर तक नहीं पहुंच पाती.
CSDS और उसकी इकाई लोकनीति लंबे समय से चुनावी सर्वे और जनमत अनुसंधान के लिए जानी जाती रही हैं. ऐसे में एक गलत पोस्ट सिर्फ एक व्यक्ति की चूक नहीं, संस्थागत भरोसे का सवाल बन जाती है. ICSSR का नोटिस इसलिए अहम है, क्योंकि यह बताता है कि सार्वजनिक धन से चलने वाले संस्थान सोशल मीडिया पर क्या साझा करते हैं, इसकी जवाबदेही तय होगी. फिलहाल CSDS की ओर से औपचारिक विस्तृत स्पष्टीकरण का इंतजार है.
चुनाव आयोग की भूमिका भी फोकस में है. CEC ज्ञानेश कुमार ने हालिया प्रेस कॉन्फ्रेंस में वोट चोरी के दावों को बेबुनियाद बताया था. आयोग का तर्क रहा है कि मतदाता सूची तैयार करने और अपडेट करने के लिए समयबद्ध, पारदर्शी प्रक्रिया है—क्लेम-ऑब्जेक्शन, बूथ-स्तरीय सत्यापन, और सार्वजनिक डिस्प्ले. अगर कहीं असाधारण उछाल दिखता है, तो स्थानीय स्तर पर जांच संभव है. विपक्ष इस प्रक्रिया की स्वतंत्र ऑडिट की मांग कर रहा है, ताकि ‘डाउट का बेनिफिट’ जनता को न मिले, बल्कि साफ जवाब मिलें.
अब आगे क्या? BJP राहुल गांधी से औपचारिक माफी की मांग कर रही है. कांग्रेस संभवतः इस प्रकरण को ‘डेटा मिसरीडिंग’ तक सीमित बताकर संस्थागत सुधार की मांग दोहराएगी. ICSSR का अगला कदम तय करेगा कि अकादमिक-रिसर्च संस्थानों के लिए सोशल मीडिया कंटेंट पर आंतरिक SOPs और प्री-पब्लिश रिव्यू अनिवार्य होंगे या नहीं. और सबसे अहम, जनता के लिए संदेश यही—सिर्फ वायरल होने से कोई डेटा सच नहीं बन जाता; ठोस, आधिकारिक दस्तावेज और पारदर्शी स्पष्टीकरण ही आखिरी कसौटी हैं.
टिप्पणि
Anish Kashyap
ये सब डेटा का खेल है भाई साहब। जब तक आधिकारिक स्रोत नहीं दिखेंगे, तब तक कोई भी बात बिना चेक के नहीं माननी चाहिए। वोट चोरी का आरोप तो बहुत आसानी से लग जाता है, पर साबित करना तो मुश्किल है।
Poonguntan Cibi J U
अरे ये सब तो बस राजनीति का एक और नाटक है जिसमें डेटा को बहाने के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है। एक व्यक्ति की गलती को लेकर पूरी संस्था को निशाना बनाना बिल्कुल बेकार है, और फिर दोनों पार्टियां अपने-अपने नेताओं को बचाने के लिए इतना शोर मचा रही हैं जैसे कोई देश का भविष्य बच रहा हो। असली समस्या तो ये है कि हम डेटा को समझने की बजाय उसे लड़ाई का हथियार बना लेते हैं। अगर आपको लगता है कि एक ग्राफ से पूरा चुनाव बदल सकता है, तो आपको शायद डेटा साइंस की बजाय गणित की किताबें पढ़नी चाहिए।
Vallabh Reddy
इस विवाद के प्रकाश में, एक अकादमिक संस्थान द्वारा सामाजिक मीडिया पर अप्रमाणित डेटा का प्रकाशन एक गंभीर नैतिक लापरवाही है। लोकनीति के अनुसंधान के क्षेत्र में जिम्मेदारी का अर्थ है-सावधानी, पुष्टि, और संरक्षण। यह घटना न केवल CSDS की विश्वसनीयता को चुनौती देती है, बल्कि सार्वजनिक वित्त पोषित शोध के लिए एक चेतावनी भी है।
Mayank Aneja
डेटा की तुलना करते समय, लोकसभा और विधानसभा के इलेक्टर्स को अलग-अलग देखना चाहिए। एक लोकसभा सीट में 5-6 विधानसभा क्षेत्र होते हैं। इसलिए, बिना अनुपात के तुलना करना गलत है। अगर कोई गलती हुई, तो उसे स्वीकार करना अच्छा है, पर इसे राजनीतिक हथियार नहीं बनाना चाहिए। जनता को भ्रमित नहीं करना चाहिए।
Vishal Bambha
कांग्रेस वाले तो हर बार चुनाव आयोग को गलत बताने में माहिर हैं। एक गलती को लेकर पूरे देश में तूफान मचाना? ये तो बस धोखेबाजी है। BJP के लोगों ने ठीक कहा-ये सब डेटा की बजाय धोखे की रणनीति है। अगर आपके पास सच है तो उसे बताओ, शोर नहीं मचाओ।
Raghvendra Thakur
डेटा नहीं, भरोसा बिगड़ रहा है।
Vishal Raj
अरे ये सब तो बहुत बड़ी बात नहीं है। एक गलती हो गई, फिर माफी मांग ली। अब दोनों पार्टियां इसे लेकर लड़ रही हैं। जनता को तो बस ये चाहिए कि चुनाव निष्पक्ष हों। डेटा या नहीं, अगर आपको लगता है कि कोई चोरी कर रहा है, तो आयोग को ऑडिट करने दो। इतना शोर मत मचाओ।
Reetika Roy
संस्थागत जवाबदेही का सवाल यहां सबसे जरूरी है। CSDS जैसी संस्था के लिए डेटा पब्लिश करने से पहले एक इंटरनल रिव्यू प्रोसेस होना चाहिए। ये गलती व्यक्तिगत नहीं, सिस्टम की है। ICSSR को इस पर सख्त SOP बनाना चाहिए।
Pritesh KUMAR Choudhury
मुझे लगता है कि इस विवाद के पीछे एक बड़ा संदेश छिपा है: हम डेटा को समझना नहीं जानते। एक ग्राफ देखकर तुरंत निष्कर्ष निकालना, ये बुद्धिमानी नहीं, बल्कि अज्ञानता है। चुनाव आयोग के पास डेटा की अपडेटेड सूची है, और अगर कोई असामान्य उछाल है, तो उसे जांचना चाहिए। लेकिन ये सब शोर बस डिजिटल धोखे का हिस्सा है।
Mohit Sharda
हम सबको याद रखना चाहिए कि राजनीति में भावनाएं ज्यादा काम करती हैं न कि तथ्य। इस विवाद में डेटा की बजाय भावनाओं का खेल चल रहा है। अगर हम एक दूसरे को सुनने की कोशिश करें, तो शायद इस तरह की गलतफहमियां कम हो जाएं। बस एक बार गहराई से सोचें।
Sanjay Bhandari
ye sab bol rahe ho par kya koi ne check kiya ki actual voter list me kya change hua? maine apne area ka data dekha hai aur 2024 me 30% se zyada voters add hue hai kyun ki naye aadhar card aur migration ke karan. ye sirf ek error nahi hai, ye real change hai.
Mersal Suresh
इस घटना के माध्यम से हमें यह सीखना चाहिए कि अकादमिक संस्थानों के लिए सोशल मीडिया पर पोस्ट करना एक विशेष जिम्मेदारी है। डेटा की वैधता, स्रोतों की पुष्टि, और प्रकाशन से पहले दो-स्तरीय समीक्षा अनिवार्य होनी चाहिए। यदि ऐसी गलतियाँ बार-बार होती हैं, तो सार्वजनिक धन का उपयोग अनुचित हो जाता है। ICSSR को इस मामले में एक स्पष्ट नीति बनानी चाहिए और अगली गलती पर तुरंत अनुदान रोकना चाहिए।
Pal Tourism
yrr ye sab kya baat hai? 47% increase? kya tum log school me maths nahi padhe? ek lok sabha seat me 5-6 vidhan sabha constituencies hote hain. unka total compare karna matlab ek basket me 5 apples aur dusre me 3 apples rakh ke bola ki 47% increase hua. ye logic kya hai? aur phir koi bhi na bhai koi bhi na. ye sab toh sirf media aur politics ka game hai. CSDS ne galti ki, maafi maang li, ab khatam karo. isse zyada kya chahiye?
Sunny Menia
हमें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि जनता को भ्रमित करने के बजाय, डेटा की स्पष्टता बढ़ानी चाहिए। चुनाव आयोग की वेबसाइट पर वोटर लिस्ट का अपडेटेड डेटा आसानी से उपलब्ध होना चाहिए। अगर हम सब एक ही स्रोत से डेटा देखेंगे, तो ऐसे विवाद कम हो जाएंगे। ये बहस बंद करके एक ट्रांसपेरेंट सिस्टम बनाने पर ध्यान दें।