जयपुर में बंद का जवाब: वाल्मीकि समाज ने क्यों खोलवाई दुकानें?
जयपुर के बाजारों में अचानक खलबली मच गई जब वाल्मीकि समुदाय के लोग सड़कों पर उतरे, लेकिन इस बार वजह कुछ अलग थी। जहां व्यापारी कई दिनों से चल रहे बंद का पालन कर रहे थे, वहीं वाल्मीकि समाज के प्रतिनिधियों ने पहल करके कई दुकानें फिर से खुलवा दीं। उनका साफ कहना था—बंद का तरीका गलत है, इससे आम लोगों और व्यापारियों की रोजी-रोटी पर सीधा असर पड़ रहा है।
पिछले कुछ समय से सफाईकर्मी भर्ती प्रक्रिया को लेकर प्रदेश में आक्रोश बढ़ता जा रहा है। इन भर्तियों में अनियमितताएं, आंतरिक आरक्षण की अनदेखी और पुरानी कानूनी अड़चनों ने हालात को तनावपूर्ण बना दिया है। वाल्मीकि समाज का कहना है कि उनकी जायज मांगों की बार-बार अनदेखी की गई।
समुदाय की इस प्रतिक्रिया ने शहर में संदेश दिया कि हर आंदोलन केवल विरोध नहीं है; कभी-कभी यह व्यवस्था बनाए रखने का भी जरिया बन सकता है। व्यापारियों का कहना है कि समाज के लोगों ने बेहद शांतिपूर्वक दुकानें खुलवाईं और उन्हें किसी तरह की परेशानी नहीं होने दी।
सफाईकर्मियों की मांगें—मुद्दा क्या है?
आंदोलन की बड़ी वजह साफ है—राज्य में 30,000 से ज्यादा सफाईकर्मियों की भर्ती अटकी हुई है। यही नहीं, वाल्मीकि समुदाय को अनुसूचित जातियों के भीतर 'आंतरिक आरक्षण' देने की मांग लंबे समय से की जा रही है ताकि उन्हें नौकरी में वाजिब प्रतिनिधित्व मिले।
- भर्ती की प्रक्रिया बार-बार लटकती रही है, जिससे हजारों बेरोजगार युवाओं में नाराजगी है।
- समुदाय की मांग है कि पूर्व भर्ती बैचों में फंसे कानूनी मामलों का जल्द निपटारा किया जाए—अक्सर इन्हीं केसों की वजह से नई भर्ती भी रुक जाती है।
- सार्वजनिक संस्थानों में सफाईकर्मियों को ठेके पर रखने की परंपरा खत्म करने की भी बात हो रही है। उनका कहना है कि संविदा मजदूरी कर्मचारी शोषण का सबसे बड़ा जरिया बन चुकी है।
- ये भी चाहते हैं कि न्यूनतम वेतन में बढ़ोतरी हो और सफाईकर्मी की मृत्यु पर उसके आश्रित को नियमों के तहत सरकारी नौकरी मिले।
समाज ने साफ कर दिया है कि अगर मांगे नहीं मानी गईं तो 15 अगस्त 2025 से 'स्टॉप वर्क – नो ब्रूम' (काम बंद – झाड़ू बंद) राज्यव्यापी हड़ताल शुरू होगी। यह हड़ताल केवल सफाई की नहीं, पूरे नगर निकाय तंत्र को ठप्प कर सकती है।
बात सिर्फ सरकारी नीतियों की नहीं है, बल्कि सामाजिक समीकरण भी बदल रहे हैं। वाल्मीकि समुदाय ने अपने प्रदर्शन से यह जता दिया कि आर्थिक और समाजिक स्थिरता उनकी प्राथमिकता है। जहां एक तरफ अधिकांश समुदाय अपने हक के लिए आंदोलन कर रहे हैं, वहीं वाल्मीकि समाज ने खुद मोर्चा संभाल लिया है। यह विरोध सिर्फ सरकार के खिलाफ नहीं, बल्कि समाज व्यवस्था में सुधार की पुरजोर माँग है।