जयपुर में सफाईकर्मी भर्ती पर विवाद: वाल्मीकि समाज ने व्यापारियों की दुकानें फिर से खुलवाई

जयपुर में सफाईकर्मी भर्ती पर विवाद: वाल्मीकि समाज ने व्यापारियों की दुकानें फिर से खुलवाई
द्वारा swapna hole पर 9.07.2025

जयपुर में बंद का जवाब: वाल्मीकि समाज ने क्यों खोलवाई दुकानें?

जयपुर के बाजारों में अचानक खलबली मच गई जब वाल्मीकि समुदाय के लोग सड़कों पर उतरे, लेकिन इस बार वजह कुछ अलग थी। जहां व्यापारी कई दिनों से चल रहे बंद का पालन कर रहे थे, वहीं वाल्मीकि समाज के प्रतिनिधियों ने पहल करके कई दुकानें फिर से खुलवा दीं। उनका साफ कहना था—बंद का तरीका गलत है, इससे आम लोगों और व्यापारियों की रोजी-रोटी पर सीधा असर पड़ रहा है।

पिछले कुछ समय से सफाईकर्मी भर्ती प्रक्रिया को लेकर प्रदेश में आक्रोश बढ़ता जा रहा है। इन भर्तियों में अनियमितताएं, आंतरिक आरक्षण की अनदेखी और पुरानी कानूनी अड़चनों ने हालात को तनावपूर्ण बना दिया है। वाल्मीकि समाज का कहना है कि उनकी जायज मांगों की बार-बार अनदेखी की गई।

समुदाय की इस प्रतिक्रिया ने शहर में संदेश दिया कि हर आंदोलन केवल विरोध नहीं है; कभी-कभी यह व्यवस्था बनाए रखने का भी जरिया बन सकता है। व्यापारियों का कहना है कि समाज के लोगों ने बेहद शांतिपूर्वक दुकानें खुलवाईं और उन्हें किसी तरह की परेशानी नहीं होने दी।

सफाईकर्मियों की मांगें—मुद्दा क्या है?

आंदोलन की बड़ी वजह साफ है—राज्य में 30,000 से ज्यादा सफाईकर्मियों की भर्ती अटकी हुई है। यही नहीं, वाल्मीकि समुदाय को अनुसूचित जातियों के भीतर 'आंतरिक आरक्षण' देने की मांग लंबे समय से की जा रही है ताकि उन्हें नौकरी में वाजिब प्रतिनिधित्व मिले।

  • भर्ती की प्रक्रिया बार-बार लटकती रही है, जिससे हजारों बेरोजगार युवाओं में नाराजगी है।
  • समुदाय की मांग है कि पूर्व भर्ती बैचों में फंसे कानूनी मामलों का जल्द निपटारा किया जाए—अक्सर इन्हीं केसों की वजह से नई भर्ती भी रुक जाती है।
  • सार्वजनिक संस्थानों में सफाईकर्मियों को ठेके पर रखने की परंपरा खत्म करने की भी बात हो रही है। उनका कहना है कि संविदा मजदूरी कर्मचारी शोषण का सबसे बड़ा जरिया बन चुकी है।
  • ये भी चाहते हैं कि न्यूनतम वेतन में बढ़ोतरी हो और सफाईकर्मी की मृत्यु पर उसके आश्रित को नियमों के तहत सरकारी नौकरी मिले।

समाज ने साफ कर दिया है कि अगर मांगे नहीं मानी गईं तो 15 अगस्त 2025 से 'स्टॉप वर्क – नो ब्रूम' (काम बंद – झाड़ू बंद) राज्यव्यापी हड़ताल शुरू होगी। यह हड़ताल केवल सफाई की नहीं, पूरे नगर निकाय तंत्र को ठप्प कर सकती है।

बात सिर्फ सरकारी नीतियों की नहीं है, बल्कि सामाजिक समीकरण भी बदल रहे हैं। वाल्मीकि समुदाय ने अपने प्रदर्शन से यह जता दिया कि आर्थिक और समाजिक स्थिरता उनकी प्राथमिकता है। जहां एक तरफ अधिकांश समुदाय अपने हक के लिए आंदोलन कर रहे हैं, वहीं वाल्मीकि समाज ने खुद मोर्चा संभाल लिया है। यह विरोध सिर्फ सरकार के खिलाफ नहीं, बल्कि समाज व्यवस्था में सुधार की पुरजोर माँग है।

टिप्पणि

Pritesh KUMAR Choudhury
Pritesh KUMAR Choudhury

इस तरह के आंदोलन असल में समाज की गहराई को दिखाते हैं। बस झाड़ू उठाना नहीं, बल्कि न्याय की मांग करना है इसका मकसद। 🙏

जुलाई 11, 2025 AT 07:44
Mohit Sharda
Mohit Sharda

असल में ये बहुत सुंदर बात है कि वाल्मीकि समाज ने बंद के बजाय दुकानें खोलवा दीं। ये न सिर्फ व्यापारियों के लिए अच्छा है, बल्कि समाज के लिए भी एक नया मिसाल है। हमें ऐसे ही शांतिपूर्ण आंदोलनों की जरूरत है।

जुलाई 12, 2025 AT 16:49
Sanjay Bhandari
Sanjay Bhandari

yaar ye sab toh theek hai lekin kya koi sochta hai ki 30k log berojgar hain aur unki family ki kya hoga? sarkar bas baat krti hai, action nahi hota 😒

जुलाई 13, 2025 AT 17:24
Mersal Suresh
Mersal Suresh

यह आंदोलन केवल एक सामाजिक असंतोष का प्रतीक नहीं, बल्कि भारतीय लोकतंत्र की स्वस्थ अभिव्यक्ति है। वाल्मीकि समुदाय ने संवैधानिक अधिकारों के संरक्षण के लिए एक नियमित, शांतिपूर्ण और व्यवस्थित प्रक्रिया अपनाई है। यह नीति निर्माण के लिए एक आदर्श उदाहरण है।

जुलाई 14, 2025 AT 06:53
Pal Tourism
Pal Tourism

dekho bhaiya, ye sab toh bas political stunt hai. sabko pata hai ki 2025 tak koi change nahi hoga. aur phir 15 august ko jhadiyan band kar denge aur media mein dikh jayenge. phir kuch nahi hoga. sab kuch same reh jayega. yahi toh hai desh ka haal 😅

जुलाई 14, 2025 AT 12:50
Sunny Menia
Sunny Menia

मैं तो बहुत प्रभावित हुआ। जब एक समुदाय अपनी मांगों के लिए आंदोलन करता है, लेकिन दूसरों की ज़रूरतों को भी समझता है - ये वाकई बहुत बड़ी बात है। ऐसे लोगों को हमें समर्थन देना चाहिए।

जुलाई 16, 2025 AT 10:10
Abinesh Ak
Abinesh Ak

अरे यार, ये तो सिर्फ एक ‘performative activism’ का नया रूप है। बंद तोड़कर दुकानें खोलना? बस इतना ही? जब तक आंतरिक आरक्षण का कानूनी दस्तावेज नहीं बन जाता, तब तक ये सब एक बड़ा थिएटर है। और हाँ, ये जो ‘स्टॉप वर्क’ का धमकी भरा बयान है - वो तो बस एक टेम्पोररी लोकप्रियता का ट्रिक है।

जुलाई 16, 2025 AT 10:42

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