महाराष्ट्र चुनावों में 'कैश फॉर वोट' की गूंज
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 के मौके पर एक नया राजनीतिक कोलाहल खड़ा हुआ है। बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव विनोद तावडे पर बहुजन विकास आघाड़ी (बीवीए) ने लगाव लगाया कि वे वोटरों को प्रभावित करने के लिए नकद राशि वितरित कर रहे थे। यह आरोप उस वक्त लगा जब बीवीए कार्यकर्ताओं ने तावडे को विरार के एक होटल में रंगे हाथ पकड़ा। रिपोर्ट के अनुसार बीवीए के कार्यकर्ताओं ने तावडे के कमरे में छापा मारा, जहाँ उन्होंने 5 करोड़ रुपये की नकदी और 15 करोड़ रुपये की वितरण संबंधी डायरी बरामद की। इस घटना का वीडियो भी जारी किया गया, जिसमें तावडे बीजेपी के एक उम्मीदवार राजन नाइक के साथ दिखे।
राजनैतिक तनाव और भाजपा की प्रतिक्रिया
बीवीए नेता हिटेंद्र ठाकुर और उनके पुत्र क्षितिज ठाकुर ने तावडे का आमना-सामना किया और उनसे यह जानने की कोशिश की कि वे चुनाव प्रचार समाप्त होने के बाद भी उस क्षेत्र में क्यों मौजूद थे। उन्होंने इस बात पर भी सवाल उठाया कि होटल के सीसीटीवी कैमरे काम क्यों नहीं कर रहे थे। इसका मतलब यह निकाला जा रहा है कि नकद वितरण में लिप्त होने के आरोप को छुपाने का प्रयास किया गया था। तावडे ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि वे सिर्फ वोटिंग मशीनों की सीलिंग के बारे में बात करने के लिए आए थे और बीवीए के कार्यकर्ताओं ने उनके मकसद को गलत समझा।
उधव ठाकरे और विपक्ष का बयान
शिवसेना (यूबीटी) के अध्यक्ष उधव ठाकरे ने इस मामले पर टिप्पणी करते हुए बताया कि जब वह क्षेत्र में गए थे तो उनकी जाँच की गई थी लेकिन उनमें कुछ भी संदिग्ध नहीं पाया गया। उन्होंने कहा कि बीजेपी के नेताओं की ठीक से जाँच नहीं होती। ठाकरे ने एनसीपी नेता अनिल देशमुख पर हमले की घटना का भी जिक्र किया, जिन्होंने पोल पर नज़र रखनी थी। विरोधी नेताओं जैसे शिवसेना (यूबीटी) के संजय राउत और महाराष्ट्र कांग्रेस के अध्यक्ष नाना पटोले ने चुनाव आयोग से मामले की गहन जांच की मांग की।
कानूनी कार्रवाई की मांग
इस पर उपजे विवाद से होटल के बाहर प्रदर्शन तेज हो गया और बीवीए कार्यकर्ताओं ने तावडे की तत्काल गिरफ्तारी की मांग की। पुलिस ने होटल सील कर दिया और तावडे को वहां से निकालने की कोशिश के दौरान उन्हें विरोध का सामना करना पड़ा। इस पूरे मसले ने राजनीतिक बहस छेड़ दी है, जिसके चलते विभिन्न नेताओं ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया दी और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की।
इस मामले ने चुनावों के पूर्व ही राजनीतिक गहमा-गहमी बढ़ा दी है। यह सवाल उभर कर आया है कि क्या महाराष्ट्र की राजनीति में अभी भी कैश फॉर वोट जैसे पुराने हथकंडे चल रहे हैं? ऐसा लगता है कि सच्चाई और न्याय की स्थिति को समझाने के लिए एक निष्पक्ष जांच की अनिवार्यता है।