ऑस्कर 2026: नीरज घायवन की ‘होमबाउंड’ भारत की आधिकारिक एंट्री

ऑस्कर 2026: नीरज घायवन की ‘होमबाउंड’ भारत की आधिकारिक एंट्री
द्वारा swapna hole पर 20.09.2025

रिपोर्ट: स्वप्ना

भारत की ऑस्कर एंट्री: ‘होमबाउंड’ क्यों और कैसे चुनी गई

नीरज घायवन की नई फीचर फिल्म ‘होमबाउंड’ को ऑस्कर 2026 के बेस्ट इंटरनेशनल फीचर फिल्म वर्ग के लिए भारत की आधिकारिक एंट्री घोषित किया गया है। फिल्म फेडरेशन ऑफ इंडिया (FFI) ने 24 भाषाई फिल्मों की प्रतिस्पर्धा के बाद शुक्रवार को यह फैसला सुनाया। चयन समिति के चेयरपर्सन एन. चंद्रा ने कहा, लाइन-अप इतना मजबूत था कि निर्णय मुश्किल था, लेकिन ‘होमबाउंड’ की कहानी, कारीगरी और सार्वभौमिक भावनात्मक पहुंच ने बढ़त दिलाई।

यह फिल्म दो बचपन के दोस्तों की कहानी है, जो उत्तर भारत के एक छोटे कस्बे से निकलकर पुलिस फोर्स में नौकरी का सपना देखते हैं—इज़्ज़त और सुरक्षा की वही तलाश, जो लंबे समय से उनसे छिनती रही है। लक्ष्य के करीब पहुंचते ही बढ़ती बेचैनी उनकी दोस्ती को कसौटी पर रखती है। कहानी की जड़ें एक सच्चे किस्से में हैं, जिसे 2020 में न्यूयॉर्क टाइम्स में बशारत पीर ने ‘A Friendship, a Pandemic and a Death Beside the Highway’ शीर्षक से लिखा था।

कास्टिंग युवा और तीखी है—इशान खट्टर, विशाल जेठवा और जान्हवी कपूर लीड में हैं। प्रोडक्शन धर्मा प्रोडक्शंस का है और हॉलीवुड के दिग्गज मार्टिन स्कॉर्सेसी एग्ज़िक्यूटिव प्रोड्यूसर के तौर पर जुड़े हैं। उद्योग के अंदरूनी लोग इसे इंटरनेशनल कम्युनिटी में फिल्म की दृश्यता बढ़ाने वाली पेशकश मान रहे हैं।

‘होमबाउंड’ का वर्ल्ड प्रीमियर 21 मई 2025 को कान्स फिल्म फेस्टिवल के ‘अन सर्टेन रिगार्ड’ सेक्शन में हुआ, जहां इसे स्टैंडिंग ओवेशन मिला। इसके बाद 50वें टोरंटो इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में यह इंटरनेशनल पीपल्स चॉइस अवॉर्ड की रेस में सेकंड रनर-अप रही। ये शुरुआती संकेत बताते हैं कि फिल्म फेस्टिवल सर्किट में इसे मजबूत रिस्पॉन्स मिला है—जो ऑस्कर अभियान के लिए जरूरी हवा देता है।

चयन प्रक्रिया इस बार भी बहुस्तरीय रही। 12 सदस्यीय जूरी—प्रोड्यूसर, डायरेक्टर, राइटर, एडिटर और पत्रकारों का मिश्रण—ने कई दिनों की स्क्रीनिंग्स के बाद ‘होमबाउंड’ को चुना। जिन फिल्मों पर गंभीर चर्चा हुई, उनमें शामिल रहीं:

  • ‘पुष्पा 2’
  • ‘द बंगाल फाइल्स’
  • ‘सुपरबॉयज़ ऑफ़ मालेगांव’
  • ‘कन्नप्पा’
  • और अलग-अलग भाषाओं की अन्य फीचर फिल्में

धर्मा प्रोडक्शंस के प्रमुख करण जौहर ने इसे “टीम की विनम्र जीत” बताते हुए कहा, यह नीरज घायवन का लेबर ऑफ लव है, जो दुनिया भर के दर्शकों से कनेक्ट करेगा। फिल्म की भारत में रिलीज़ डेट 26 सितंबर 2025 तय है—यही थिएट्रिकल रन ऑस्कर की पात्रता नियमों के लिहाज से भी अहम है।

ऑस्कर की राह: रणनीति, संदर्भ और उम्मीदें

ऑस्कर की राह: रणनीति, संदर्भ और उम्मीदें

बेस्ट इंटरनेशनल फीचर फिल्म कैटेगरी (पहले फॉरेन लैंग्वेज फिल्म) में हर देश एक आधिकारिक एंट्री भेजता है। इसके बाद एकेडमी की कमिटियां स्क्रीनिंग करती हैं, दिसंबर के आस-पास शॉर्टलिस्ट आती है और नामांकन की घोषणा जनवरी में होती है। यहां से आगे की लड़ाई प्रमोशन, स्क्रीनिंग्स, क्यू&A, और मजबूत यूएस-डिस्ट्रीब्यूशन पार्टनरशिप पर टिकती है। स्कॉर्सेसी जैसे नाम का जुड़ना—भले वह रचनात्मक प्रक्रिया का हिस्सा हों या एग्ज़िक्यूटिव गाइडेंस—ग्लोबल प्रेस और इंडस्ट्री के बीच ध्यान आकर्षित कराता है।

नीरज घायवन के लिए यह वापसी का बड़ा पल है। उनकी पहली फीचर ‘मसान’ (2015) को कान्स में ‘अन सर्टेन रिगार्ड’ में सराहना और पुरस्कार मिले थे। बाद में ‘अजीब दास्तान्स’ (2021) का ‘गीली पुच्ची’ सेगमेंट और ‘मेड इन हेवन’ (सीज़न 2) के एपिसोड्स में उन्होंने सामाजिक पदानुक्रम, लैंगिक असमानता और वर्ग-जाति की दरारों को संवेदनशीलता से खोला। ‘होमबाउंड’ भी गरिमा, संस्था पर भरोसा, और दोस्ती की नैतिक सीमाओं जैसे सवालों को केंद्र में रखती है—बड़े दर्शक वर्ग से संवाद करने वाली, मगर निजी और सादा भाषा में कही गई कहानी।

पिछले दो दशकों में भारत की आधिकारिक एंट्री कई बार चर्चा में रही है, पर नामांकन तक पहुंचना दुर्लभ रहा। अब तक ‘मदर इंडिया’, ‘सलाम बॉम्बे!’ और ‘लगान’—ये तीन ही भारतीय फिल्में इस कैटेगरी में नामांकित हुई हैं। हाल के वर्षों में वैश्विक मंच पर भारतीय उपस्थिति फिर तेज़ हुई—‘RRR’ के ‘नाटू नाटू’ को बेस्ट ओरिजिनल सॉन्ग का ऑस्कर मिला और ‘द एलिफ़ेंट व्हिस्परर्स’ ने बेस्ट डॉक्यूमेंट्री शॉर्ट फिल्म जीती। यानी कंटेंट और क्राफ्ट, दोनों मोर्चों पर भरोसा बढ़ा है, पर इंटरनेशनल फीचर में फिनिश लाइन पार करना अभी भी कठिन परीक्षा है।

‘होमबाउंड’ की चर्चा में एक और बिंदु नोट करने लायक है—भाषा और भूगोल की सीमाओं को पार करने वाली भावनात्मक सच्चाई। छोटे कस्बों से निकले पात्र, सरकारी नौकरी के सपने, और दोस्ती का तनाव—ये सब वैश्विक दर्शकों के लिए भी पढ़ने-समझने योग्य संकेत हैं। फॉर्मल क्राफ्ट की बात करें तो नीरज अक्सर अनऑस्ट्रेंटेटियस कैमरा और परफॉर्मेंस-ड्रिवन सीन बनाते हैं। अगर यही टोन फिल्म में कायम रहा, तो यह स्टार-प्रॉपल्शन नहीं, बल्कि नाट्य-घनत्व और वर्ल्ड-बिल्डिंग के दम पर वोट हासिल करने की कोशिश करेगी।

रणनीति की जमीन पर, मेकर्स को अब तीन मोर्चों पर फोकस करना पड़ेगा—भारत में सुचारू थिएट्रिकल रिलीज़ और वर्ड-ऑफ-माउथ, यूएस में स्क्रीनिंग नेटवर्क (गिल्ड्स, एकेडमी ब्रांचेज़, महत्त्वपूर्ण आर्ट-हाउस सर्किट), और प्रेस नैरेटिव जो फिल्म के सामाजिक-राजनीतिक संदर्भ को सरल और प्रभावी तरीके से रखे। TIFF में पीपल्स चॉइस की रेस में सम्मान मिलना इसी नैरेटिव का शुरुआती निर्माण लगता है।

कास्टिंग भी ‘क्रॉसओवर’ समीकरण के लिए उपयुक्त है—इशान खट्टर और जान्हवी कपूर के पास देश के अंदरूनी बाजार में युवा अपील है, जबकि विशाल जेठवा ने ‘मर्दानी 2’ जैसी फिल्मों में कच्ची तीव्रता दिखाई है। यह संयोजन फिल्म को इंटरनेशनल प्रेस में हेडलाइन वैल्यू देता है और घरेलू बॉक्स ऑफिस पर शुरुआती कर्षण भी।

अगले महीनों में ध्यान इस पर रहेगा कि ‘होमबाउंड’ का ऑस्कर कैंपेन किस तरह आकार लेता है—क्या यह सीमित पर चुनिंदा स्क्रीनिंग्स, क्राफ्ट-आर्टिकल्स, और टैलेंट-फोकस्ड इंटरव्यूज़ पर झुकेगा, या फिर व्यापक मीडिया ब्लिट्ज़ चुनेगा। जो भी हो, भारत की ओर से यह एंट्री सामाजिक यथार्थ और व्यक्तिगत आकांक्षा के संगम पर खड़ी एक ऐसी कहानी पेश करती है, जो बहस को आमंत्रित करती है—और शायद यही इसकी सबसे बड़ी ताकत है।

टिप्पणि

dinesh singare
dinesh singare

ये फिल्म बस एक और ऑस्कर की चाहत है-कोई नया नहीं, कोई गहरा नहीं, बस एक बड़े नाम के साथ एक छोटी सी कहानी को बड़ा बनाने की कोशिश। स्कॉर्सेसी का नाम लगाकर जो लोग भावुक हो रहे हैं, उन्हें बताऊं? वो इंटरनेशनल फिल्म नहीं, एक ब्रांडेड बॉलीवुड प्रोडक्ट है।

सितंबर 22, 2025 AT 06:46
Mallikarjun Choukimath
Mallikarjun Choukimath

होमबाउंड-एक ऐसी कहानी जो आधुनिक भारत के अंतर्गत छिपे विरोधाभासों को एक बहु-आयामी दर्शन के रूप में उजागर करती है। नीरज घायवन का दृष्टिकोण, जो लोककथाओं के ताने-बाने को अपने सिनेमाई विवरण के रूप में नहीं, बल्कि एक फिलोसोफिकल अलंकार के रूप में समेटता है, वास्तव में अद्वितीय है। यह फिल्म केवल दोस्ती की नहीं, बल्कि वर्गीय विरासत के अंतर्गत बने अस्तित्व के बंधनों की अध्यात्मिक विरासत है।

सितंबर 22, 2025 AT 16:23
Sitara Nair
Sitara Nair

ओह माय गॉड!!! 🥹💖 ये फिल्म तो मुझे बचपन की याद दिला रही है-जब मैं अपने दोस्त के साथ बस स्टॉप पर बैठकर रात भर बातें करती थी, और सपने देखती थी कि एक दिन हम दोनों इज़्ज़त के लिए भागेंगे... इशान और जान्हवी का केमिस्ट्री तो बिल्कुल जादू है!! 🌸✨ और विशाल जेठवा? वो तो जिंदगी का असली दर्द लेकर आ रहे हैं... मुझे लगता है ये फिल्म दुनिया को बताएगी कि भारत की कहानियां भी दिल को छू सकती हैं... 😭❤️

सितंबर 24, 2025 AT 00:04
Ashish Shrestha
Ashish Shrestha

फिल्म का नाम देखकर लगा कि कोई नया रियलिटी शो शुरू हो रहा है। ऑस्कर के लिए एंट्री के लिए ऐसी फिल्में चुनना बस एक रूटीन है-कोई न कोई नाम लगाकर बाहर भेज देना। असली फिल्में तो बॉक्स ऑफिस पर बनती हैं, न कि फेस्टिवल्स में।

सितंबर 24, 2025 AT 19:44
Avinash Shukla
Avinash Shukla

मुझे लगता है कि ये फिल्म असल में एक नए तरीके से भारतीय अनुभव को दुनिया के सामने रख रही है-बिना किसी बड़े ड्रामे के, बिना किसी बहुत बड़े विजुअल्स के। बस एक दोस्ती, एक छोटा कस्बा, और एक आदमी का सपना। शायद इसी में असली शक्ति है। 🤍

सितंबर 25, 2025 AT 08:23
Harsh Bhatt
Harsh Bhatt

हर कोई इस फिल्म को 'सामाजिक यथार्थ' कह रहा है, पर असल में ये एक बहुत ही फैशनेबल आर्ट-हाउस नाटक है-जिसे बनाने के लिए निर्माताओं ने बस एक न्यूयॉर्क टाइम्स का आर्टिकल चुना, एक एक्टर जिसका नाम ट्रेंड कर रहा है, और एक हॉलीवुड नाम लगा दिया। ये नहीं कि ये फिल्म खराब है-बस ये एक बहुत अच्छी तरह से मार्केटिंग की गई नकल है।

सितंबर 26, 2025 AT 18:12
Abhishek Abhishek
Abhishek Abhishek

क्या कोई बता सकता है कि ये फिल्म असल में क्यों चुनी गई? क्यों नहीं 'पुष्पा 2'? वो तो दुनिया भर में चल रही है। क्या ऑस्कर के लिए अब बॉलीवुड ब्लॉकबस्टर्स नहीं, बल्कि ब्रेकफास्ट शो जैसी फिल्में चाहिए?

सितंबर 28, 2025 AT 06:47

एक टिप्पणी लिखें