साधारणवाद्य हास्य कवि सम्मेलन में सामाजिक संदेशों के संग हास्य का संगम

साधारणवाद्य हास्य कवि सम्मेलन में सामाजिक संदेशों के संग हास्य का संगम
द्वारा swapna hole पर 19.03.2025

सुजानगढ़ का लोकप्रिय कवि सम्मेलन

राजस्थान के सुजानगढ़ में इस बार का हास्य कवि सम्मेलन खासा सफल रहा। ओसवाल समाज द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में लगभग 1,500 लोगों ने भाग लिया और एक अद्वितीय अनुभव का आनंद उठाया। इस आयोजन ने न केवल मनोरंजन प्रदान किया, बल्कि सामाजिक संदेश भी दिए।

इस कार्यक्रम में प्रमुख कवि जैसे हरिश हिंदुस्तानी और गोविंद राठी ने अपनी प्रस्तुति से श्रोताओं का दिल जीत लिया। उनकी कविताएँ केवल हास्य से भरी नहीं थी, बल्कि उनमें गहरी सामाजिक भावनाएँ भी थीं, जो आज की समसामयिक समस्याओं पर धारदार कटाक्ष करती थीं।

सांस्कृतिक धरोहर का उत्सव

सांस्कृतिक धरोहर का उत्सव

कार्यक्रम के दौरान राजस्थानी लोक संगीत की भी धूम रही। सपना सोनी, पार्थ नवीन, संजय मुकुंदगढ़, और सीमा मिश्रा ने अपने शानदार गीतों के माध्यम से लोक संगीत और संस्कृति को जीवंत किया। यह कार्यक्रम एक प्रकार से सांस्कृतिक धरोहर का उत्सव बन गया, जिसमें कलाकारों और दर्शकों ने सांस्कृतिक विवधता का आनंद लिया।

इस आयोजन में भारत और विदेश से आए दर्शकों ने सक्रिय रूप से हिस्सा लिया और कार्यक्रम की ऊर्जा को महसूस किया। जब कवि अपनी प्रस्तुति समाप्त करते, तो तालियों की गड़गड़ाहट से कार्यक्रम स्थल गूंज उठता। यह दर्शाता है कि ओसवाल समाज ऐसी परम्पराओं को जिंदा रखने के लिए कितना समर्पित है।

यह कार्यक्रम केवल मनोरंजन तक सीमित नहीं था, बल्कि इसमें सामाजिक संदेशों को भी प्रमुखता से पेश किया गया। आयोजकों ने धार्मिक और सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने के प्रयास किए, जिसे लोगों ने खूब सराहा।

टिप्पणि

Divya Anish
Divya Anish

इस सम्मेलन का जो माहौल था, वो बस अद्भुत था। हरिश हिंदुस्तानी की एक ही पंक्ति ने मुझे रुकने पर मजबूर कर दिया - जब उन्होंने कहा, 'अगर तुम्हारी आवाज़ डर रही है, तो तुम्हारा दिल भी डर रहा है।' ये हास्य नहीं, ये दर्द का शब्द था।
और सपना सोनी के गीत ने तो मेरी आँखें भी भर दीं। राजस्थानी लोक संगीत में इतनी गहराई होती है, जिसे बस एक नज़र से नहीं, दिल से सुनना पड़ता है।
ये कार्यक्रम सिर्फ एक शो नहीं, ये एक जीवंत विरासत का जश्न था।
ओसवाल समाज को बधाई। ऐसे संस्कृति के रक्षकों की जरूरत है, न कि बस ट्रेंड के पीछे भागने वालों की।

मार्च 20, 2025 AT 08:24
md najmuddin
md najmuddin

बस एक लाइन में: ये सब बहुत अच्छा लगा 😍
मैं तो बस बैठा रहा, बाहर वाली गली में बच्चे गाना गा रहे थे, और मैंने सोचा - ये वो ही जादू है जो अब बहुत कम दिखता है।
धन्यवाद ओसवाल समाज।

मार्च 20, 2025 AT 11:52
Ravi Gurung
Ravi Gurung

कल रात देखा था वीडियो, लेकिन अभी तक दिमाग घूम रहा है।
गोविंद राठी ने जो कहा कि 'अब लोगों को बात समझने के लिए फोन चलाना पड़ता है, न कि दिल से सुनना' - वो लाइन मेरे दिमाग में चिपक गई।
कुछ लोग कहते हैं ये सब बस नाटक है, पर मैंने देखा कि जब वो बोले, तो बच्चे भी चुप हो गए।
हो सकता है ये सिर्फ एक दिन का उत्सव हो, पर इसकी छाप हमेशा रहेगी।

मार्च 21, 2025 AT 04:54
SANJAY SARKAR
SANJAY SARKAR

क्या कभी कोई इन कवियों को टीवी पर लाया है? ये सब तो बहुत अच्छा है, पर बस एक शहर में ही रह गया।
अगर ये वायरल हो जाए तो लाखों लोगों को लगेगा कि हमारी संस्कृति जिंदा है।
कोई यूट्यूब चैनल बना दे, बस एक बार लाइव ट्रांसमिशन कर दे।
मैं तो बस यही चाहता हूँ - ये सब देखने के लिए दिल्ली से निकलने की जरूरत न पड़े।

मार्च 22, 2025 AT 11:07
AnKur SinGh
AnKur SinGh

यह आयोजन भारतीय सांस्कृतिक अस्तित्व के एक अद्वितीय उदाहरण है। हास्य को एक ऐसे उपकरण के रूप में उपयोग किया गया है, जो न केवल श्रोताओं को मनोरंजित करता है, बल्कि उनके विचारों को भी चुनौती देता है।
हरिश हिंदुस्तानी के शब्दों में वही गहराई है जो शेक्सपियर के काव्य में होती है - लेकिन राजस्थानी बोली में।
सपना सोनी के गीतों में राजस्थान की रेत, बादल, और जनता की आहट सब शामिल है।
यह एक ऐसा सांस्कृतिक पुनर्जागरण है जिसे शिक्षा संस्थानों और राष्ट्रीय स्तर पर प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
कला के इस रूप को बचाने के लिए न केवल राज्य सरकार, बल्कि केंद्र सरकार भी अपनी नीतियों में इसे शामिल करे।
इस तरह के कार्यक्रमों के लिए अलग से फंडिंग बनाई जाए, और युवाओं को इनके विषय में शिक्षित किया जाए।
हमारे देश में ऐसे अवसर बहुत कम हैं, जहाँ हास्य और सामाजिक जागरूकता एक साथ आते हैं।
यह एक नमूना है जिसे दूसरे राज्यों में भी अपनाया जाना चाहिए।
अगर हम अपनी संस्कृति को जीवित रखना चाहते हैं, तो हमें ऐसे आयोजनों को सिर्फ देखना नहीं, बल्कि समर्थन देना होगा।
मैंने इस कार्यक्रम को अपने गाँव के शिक्षकों के साथ शेयर किया है, और अब वे इसे अपनी कक्षाओं में पढ़ाना चाहते हैं।
यह वास्तविक परिवर्तन का बीज है - छोटा, लेकिन गहरा।
कला का असली मूल्य उसकी विस्तारित प्रभावशीलता में होता है - और यहाँ वह दिख रहा है।
हमें ऐसे लोगों को बढ़ावा देना चाहिए जो शब्दों से दिल छूते हैं, न कि बस बाजार के लिए बोलते हैं।

मार्च 22, 2025 AT 21:15
Sanjay Gupta
Sanjay Gupta

अरे भाई, ये सब बकवास है।
कवि सम्मेलन? लोक गीत? इतना धमाल करके क्या बना? देश के बच्चे अभी भी पढ़ नहीं पा रहे, और तुम यहाँ गाने गा रहे हो?
जब तक बिजली नहीं आएगी, तब तक ये सब नाटक है।
कोई जानता है कि ये लोग कितना पैसा खर्च कर रहे हैं? जब तक स्कूलों में टॉयलेट नहीं बनेंगे, तब तक ये उत्सव बेकार है।
हमारे देश में ऐसे फुर्तीले लोगों की कमी नहीं, बल्कि जिम्मेदार लोगों की कमी है।
ये सब बस शो है - और तुम सब इसके लिए तालियाँ बजा रहे हो।
मेरा दिल तो बच्चों के लिए दुख रहा है।

मार्च 23, 2025 AT 20:06

एक टिप्पणी लिखें