ज़ोहो के श्रीधर वेम्बु की फ्रेशवर्क्स की छंटनी पर टिप्पणी
ज़ोहो के संस्थापक श्रीधर वेम्बु ने फ्रेशवर्क्स की हालिया छंटनी पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। फ्रेशवर्क्स, जो कि नैसडैक पर सूचीबद्ध एक प्रमुख सॉफ्टवेयर कंपनी है, ने घोषणा की थी कि वे दुनिया भर में 13% कर्मचारियों, अर्थात 660 कर्मचारियों, को नौकरी से निकाल रही है। कंपनी का कहना है कि यह निर्णय उनके वैश्विक कार्यक्षेत्र को पुनर्गठित करने और कृत्रिम बुद्धिमत्ता, ग्राहक अनुभव, और कर्मचारी अनुभव पर अधिक ध्यान केंद्रित करने के लिए लिया गया है।
श्रीधर वेम्बु ने इसे 'नग्न लालच' कहा, खासकर तब जब कंपनी के पास नकदी में $1 बिलियन है, जो कि उनके वार्षिक राजस्व का 1.5 गुना है, और कंपनी में 20% की वृद्धि दर भी है। वेम्बु ने अपने ट्विटर अकाउंट पर कहा कि ऐसी वित्तीय स्थिति में, इस तरह की बड़ी संख्या में कर्मचारियों की छंटनी की जाए, और इससे ज्यादा अजीब बात यह है कि $400 मिलियन के शेयर बायबैक की योजना बनाई जाए।
नैतिकता और नेतृत्व पर सवाल
वेम्बु ने फ्रेशवर्क्स के नेतृत्व पर प्रश्न उठाए और यह सुझाव दिया कि नेतृत्व की दृष्टि और सहानुभूति में कमी है। उन्होंने कहा कि फ्रेशवर्क्स को $400 मिलियन को अन्य विकल्पों में निवेश करने का विचार करना चाहिए था, जैसे कि नई व्यापार दिशाओं में निवेश करना, जहां हटाए गए कर्मचारियों को पुनः नियुक्त किया जा सके। वेम्बु की नजर में, वे इस तरह के निर्णय न केवल अनैतिक हैं, बल्कि वे कंपनी की छवि और कर्मचारी विश्वास पर भी नकारात्मक असर डालते हैं।
ज़ोहो का उदाहरण देते हुए वेम्बु ने कहा कि उनकी कंपनी शेयरधारकों के बजाय ग्राहकों और कर्मचारियों को प्राथमिकता देती है, और यही कारण है कि वे अभी भी एक निजी कंपनी के तौर पर चल रहे हैं। यह विवाद ज़ोहो और फ्रेशवर्क्स के बीच पुराने प्रतिद्वंद्विता को फिर से उजागर करता है, जो 2020 में डेटा चोरी और व्यापार रहस्य के दुरुपयोग के आरोपों को लेकर कानूनी संघर्ष में उलझी थी।
न्यूज़लेटर में फ्रेशवर्क्स की प्रतिक्रिया की कमी
इस विषय पर फ्रेशवर्क्स की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। इसके पहले, कई आलोचकों ने कंपनियों द्वारा इस प्रकार की रणनीति को व्यवहारिक दृष्टिकोण से कम योग्यता का करार दिया है। जब कंपनियां इसी तरह की रणनीतियों का सहारा लेती हैं, तो इसका असर केवल आर्थिक रूप से नहीं बल्कि मानव संसाधनों और संगठनात्मक संरचना पर भी पड़ता है।
श्रीधर वेम्बु के इस आलोचना के बाद, यह देखना होगा कि फ्रेशवर्क्स क्या कदम उठाता है। इस घटनाक्रम से स्पष्ट है कि कंपनियों में छंटनी केवल आर्थिक दृष्टिकोण से नहीं बल्कि नैतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी समझने की आवश्यकता है। यह घटना कंपनियों और उनके नेतृत्व के लिए एक शिक्षाप्रद दृष्टान्त के रूप में देखी जा सकती है कि किस प्रकार सही निर्णय केवल आर्थिक न होकर सामाजिक और नैतिक होना चाहिए।