हवा हमारे रोज़मर्रा के जीवन का हिस्सा है, पर जब उसका मानक गिर जाता है तो सांस लेना भी मुश्किल हो सकता है। भारत में कई शहरों में पीएम2.5 और पीएम10 स्तर अक्सर सीमा से ऊपर रहते हैं, जिससे अस्थमा, एलर्जी और दिल‑दिमाग की बीमारियां बढ़ती दिख रही हैं। इसलिए वायु गुणवत्ता को समझना और सुधार के कदम उठाना अब ज़रूरी है।
सरकारी मॉनिटरिंग नेटवर्क के अनुसार, दिल्ली‑एनसीआर, मुंबई, कोलकाता और बेंगलुरु जैसे बड़े शहरों में औसत AQI (Air Quality Index) 150‑200 की रेंज में रहता है, यानी ‘असुविधाजनक’ से ‘खतरनाक’ तक। छोटे कस्बों में भी जलवायु परिवर्तन के कारण धूल और कार्बन डाइऑक्साइड बढ़ी है। इन आँकों का असर सिर्फ स्वास्थ्य पर नहीं, बल्कि काम‑काज की उत्पादकता और पर्यटन पर भी पड़ता है।
हर कोई बड़े स्तर पर बदलाव नहीं कर सकता, लेकिन छोटे-छोटे कार्य बड़ी 차ड़ बना देते हैं:
इन छोटे कदमों को रोज़मर्रा की आदत बना लें तो हवा में फर्क दिखेगा और स्वास्थ्य भी सुधरेगा। याद रखें, साफ वायु सिर्फ सरकार की जिम्मेदारी नहीं, हर व्यक्ति का योगदान जरूरी है।
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दिल्ली एनसीआर में वायु गुणवत्ता 'बहुत खराब' श्रेणी में पहुंच गई है, जहां कई क्षेत्रों में हानिकारक प्रदूषण स्तर दर्ज किए गए हैं। वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) 300 से अधिक हो गया है, जिससे गंभीर वायु प्रदूषण की स्थिति बन गई है। परिस्थितियां अगले तीन दिनों में और अधिक बिगड़ने की आशंका है। प्रदूषण के मुख्य कारणों में वाहनों से उत्सर्जन, निर्माण गतिविधियां, और पराली जलाना शामिल हैं।