रामपुर में मुस्लिम नेतृत्व की अनदेखी को लेकर आजम खान का बड़ा हमला
रामपुर का सियासी पारा फिर चढ़ गया है और वजह हैं आजम खान। सपा के वरिष्ठ नेता अपने तीखे तेवरों के लिए जाने जाते हैं, और इस बार उन्होंने सीधे अपने ही सहयोगी INDAI गठबंधन (जिसमें समाजवादी पार्टी और कांग्रेस दोनों शामिल हैं) को कठघरे में खड़ा कर दिया है। उन्होंने जेल से एक खुला पत्र लिखा, जिसमें रामपुर में मुस्लिम नेताओं के खिलाफ लगातार बढ़ रही सख्ती और कथित पक्षपात को लेकर सवाल उठाए हैं। आजम ने बाकायदा अपनी पार्टी की चिट्ठी पर लिखा कि जब संसद में संभल हिंसा के मुद्दे को आवाज मिल सकती है, तो रामपुर की अनदेखी क्यों हो रही है?
आजम के मुताबिक, इस रवैये से मुस्लिम समुदाय खुद को हाशिये पर महसूस कर रहा है और अगर ऐसा ही चलता रहा, तो वे अपनी राजनीतिक भागीदारी पर फिर से सोच सकते हैं। उनके इस पत्र के बाद सपा की ही अंदरूनी राजनीति में भी हलचल है—क्योंकि इसमें कांग्रेस पर भी कटाक्ष है कि वो सपा की संसद में उठाई गई बातों पर साथ नहीं देती। रामपुर के हालात को लेकर कांग्रेस भी पिछले कुछ वक्त से मुस्लिम वोट बैंक को फिर से साधने में जुटी है। नेताओं की आवाजाही, बड़े नामों जैसे इमरान मसूद और डॉ. दानिश अली से मुलाकातें इसी सिलसिले का हिस्सा हैं।
गठबंधन में बढ़ती खटास और 2024 चुनावों की गहमागहमी
आजम खान के इस पत्र से गठबंधन में चल रही अंदरूनी टकराव साफ नजर आने लगा है। आरोप है कि दोनों सत्तारूढ़ दल—चाहे BJP हो या INDAI गठबंधन—मुस्लिम वोटर्स को तो इस्तेमाल करते हैं, लेकिन जब हक और प्रतिनिधित्व देने की बारी आती है, तो सब चुप्पी साध लेते हैं। आजम ने खुद की, अपने बेटे अब्दुल्ला और पत्नी तजीन फातिमा की जेल में बंदी का भी जिक्र किया—जिसे वे राजनीतिक साजिश मानते हैं।
रामपुर का उदाहरण सामने रखकर आजम समाजवादी पार्टी के नेतृत्व को आड़े हाथों लेते हैं और मांग करते हैं कि कांग्रेस व अन्य सहयोगी दल इस मुद्दे पर अपनी नीति तुरंत साफ करें। अगर समाज में लगातार डर और अलगाव का माहौल बना रहा, तो मुस्लिम समुदाय अगली बार राजनीति के साथ कैसा रिश्ता रखेगा, यह तय करना मुश्किल हो सकता है। दूसरी तरफ, कांग्रेस के लिए भी यूपी में मुस्लिम समर्थन दोबारा पाना गठबंधन की मजबूती के लिए बेहद अहम है। आपसी खींचतान का असर न सिर्फ लोकसभा चुनाव 2024 बल्कि पार्टी कार्यकर्ताओं के मनोबल पर भी पड़ सकता है।
रामपुर का सवाल अब यूपी में मुस्लिम राजनीति के केंद्र में आ चुका है। क्या सपा और कांग्रेस मिलकर भरोसा जीत पाएंगे या ये तनातनी और उलझ जाएगी? आने वाले कुछ हफ्ते तस्वीर साफ करने वाले हैं।
टिप्पणि
dinesh singare
ये सब बकवास सिर्फ चुनावी चाल है। जब जीतना होता है तो मुस्लिम वोट बैंक का नाम लेते हैं, जब फैसला करना होता है तो चुप्पी साध लेते हैं। आजम खान ने जेल से जो कहा, वो सच है - रामपुर में किसी को भी असली ताकत नहीं दी जा रही। सपा और कांग्रेस दोनों ही इस बार बिना नाम लिए बस वोट चाहते हैं।
Priyanjit Ghosh
अरे भाई, ये तो वो खेल है जहाँ बाप बनने के लिए बेटे को जेल में भेज दिया जाए 😅 आजम खान का पत्र पढ़ा? उनकी बीवी और बेटे को जेल में डालकर अब राजनीति का दावा कर रहे हैं। ये सब नाटक है, लेकिन नाटक इतना बढ़िया कि लोग भी देख रहे हैं।
Anuj Tripathi
ये सब तो बस एक बड़ी बात है जिसे हम सब जानते हैं लेकिन कोई बोलने की हिम्मत नहीं करता। अगर मुस्लिम नेता असली ताकत नहीं रखते तो वो कौन बनाएगा? सपा के अंदर भी लोग बोलने लगे तो ये अच्छी बात है। अगर अब भी कांग्रेस चुप रही तो वो अपने वोटर्स को बेवकूफ बना रही है। ये सब बातें बाद में नहीं बल्कि अभी सुन लो।
Hiru Samanto
मुझे लगता है ये बात बहुत गहरी है और इसे समझने के लिए हमें इतिहास भी देखना होगा। रामपुर तो लंबे समय से मुस्लिम नेतृत्व का दिल है और अब जब वो खामोश हो रहे हैं तो ये बहुत बड़ा संकेत है। मुझे नहीं लगता कि कोई दल असली ताकत देना चाहता है बस वोट चाहता है।
Divya Anish
मैं इस विषय को बहुत गंभीरता से लेती हूँ। राजनीति में प्रतिनिधित्व का मतलब सिर्फ नाम नहीं, बल्कि फैसले लेने की क्षमता है। अगर आजम खान और उनके परिवार के खिलाफ राजनीतिक अभियान चल रहा है, तो ये केवल एक व्यक्ति के खिलाफ नहीं, बल्कि एक समुदाय के खिलाफ एक संकेत है। अगर गठबंधन वास्तविक बदलाव चाहता है, तो यहाँ से शुरुआत होनी चाहिए।
md najmuddin
बस एक बात - अगर ये सब चलता रहा तो लोग बस बूट नहीं बल्कि बॉक्स भी छोड़ देंगे 😐 आजम खान का बयान बहुत जरूरी था। अब देखते हैं कि कौन सुनता है।