हेम कमेटी की रिपोर्ट: मलयालम फिल्म उद्योग में महिलाओं की जटिल स्तिथि
मलयालम फिल्म उद्योग, जिसे 'मॉलीवुड' के नाम से भी जाना जाता है, में महिलाओं की स्थिति पर हेम कमेटी द्वारा की गई एक गंभीर रिपोर्ट ने पूरे फिल्म उद्योग में आँधियों का समाना किया है। जस्टिस के. हेम की अध्यक्षता वाली यह कमेटी दो साल तक चली व्यापक जाँच के बाद इस निष्कर्ष पर पहुँची है कि महिलाओं को वहाँ रोजगार करते हुए लगातार यौन उत्पीड़न और शोषण का सामना करना पड़ता है।
रिपोर्ट के अनुसार, महिलाओं से कार्य स्थल पर 'समायोजन' और 'समझौता' का माँग किया जाता है, जो वास्तव में यौन सेवाओं की मांग होती है। यह स्थिति विशेष रूप से उनके करियर की शुरुआत में होती है जब उन्हें फिल्मों में काम पाने के लिए समझौतों के लिए मजबूर किया जाता है। यह चौंकाने वाला खुलासा बताता है कि उद्योग में एक 'पावर समूह' है जो लगभग 15 प्रमुख व्यक्तियों शामिल हैं, जिनमें अभिनेता, निर्माता और निर्देशक शामिल हैं। यह समूह अपने अधिकार क्षेत्र का उपयोग करके महिलाओं को धमकाता या ब्लैकलिस्ट कर देता है अगर वे उनकी मांगों को पूरा नहीं करती हैं।
सुबह से रात तक चलता है उत्पीड़न
कमेटी की रिपोर्ट में महिला श्रमिकों की कार्यशाला की बुनियादी सुविधाओं की कमी की भी गहरी समस्या को उजागर किया गया है। सेट पर महिलाओं के लिए शौचालय और बदलने के कमरे जैसे बुनियादी ढांचे का अभाव है, जिसके कारण इन्हें खुले और निजी स्थानों का उपयोग करना पड़ता है। खासकर बाहरी शूट्स के दौरान महिलाओं को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। यहाँ तक कि मासिक धर्म के दौरान इनके हालात और भी दयनीय हो जाते हैं, क्योंकि शुद्ध पानी की अनुपलब्धता के कारण उन्हें यू.टी.आई जैसी गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है।
महिलाएँ अक्सर पानी तक नहीं पीतीं, ताकि उन्हें शौच जाने की जरूरत न पड़े। दैनिक जरूरतों के लिए भी जगह न होने से उन पर जो मनोवैज्ञानिक दबाव पड़ता है, वह किसी से छुपा नहीं है।
शिकायतों के लिए ट्रिब्यूनल की आवश्यकता
हेम कमेटी की रिपोर्ट में इस गंभीर समस्याओं के समाधान के लिए कुछ सिफारिशें भी दी गई हैं। इसके तहत महिलाओं की शिकायतों को निपटाने के लिए एक ट्रिब्यूनल की स्थापना की मांग की गई है, जो स्त्रियों की समस्याओं से संबंधित मामलों को सही तरीके से निपटा सके और उनके साथ निष्पक्ष व्यवहार सुनिश्चित कर सके।
आखिरकार रिपोर्ट आई सामने
यह रिपोर्ट 2019 में प्रस्तुत की गई थी, लेकिन कई कानूनी अड़चनों के कारण इसे सार्वजनिक नहीं किया जा सका। अभिनेता रंजीनी ने इसे निजता संबंधी चिंताओं के कारण प्रकाशित नहीं होने देने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ी। लेकिन आखिरकार, केरल सरकार और राज्य सूचना आयोग के समर्थन और कड़ी कानूनी लड़ाई के बाद इसे कुछ संपादनों के साथ प्रकाशित किया गया।
रिपोर्ट के प्रकाशन के बाद, पूरे मलयालम फिल्म उद्योग में महिलाओं की सुरक्षा और भलाई को लेकर गहरा चिंतन शुरू हो गया है। इस रिपोर्ट ने हम सब को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि महिलाओं की स्थिति मौजूदा समय में भी इतनी दयनीय क्यों है, और इसके लिए क्या कदम उठाने आवश्यक हैं।
परिणाम और सुधारों की संभावनाएँ
रिपोर्ट की अनुशंसाएँ केवल एक शुरुआत हैं। यह जानना आवश्यक है कि सुधार की दिशा में उठाए गए कदम सही दिशा में जा रहे हैं या नहीं। महिला ‘एसोसिएशन फॉर फिल्म इंडस्ट्री’ जैसी संस्थाएँ अब सक्रिय हो रही हैं और सरकार के साथ मिलकर कार्य करने के लिए तत्पर हैं।
उद्योग में समानता, सुरक्षा और सम्मान को सुनिश्चित करने के लिए सख्त कानून और नियमावली बनाने की दिशा में भी तेजी से कदम उठाने की आवश्यकता है। महिलाओं के प्रति किए जा रहे अत्याचारों को रोकने के लिए हमें सतर्कता और संवेदनशीलता के साथ कदम उठाने होंगे।
इस नई दिशा में हमें अपने समाज के हर स्तर पर एक नए बदलाव की आवश्यकता है। महिला सशक्तिकरण केवल एक शब्द नहीं होना चाहिए, बल्कि यह हमारे समाज का मौलिक हिस्सा बनना चाहिए।
टिप्पणि
Priyanjit Ghosh
ये सब तो पुरानी बात है, लेकिन अब तक कोई नहीं सुना चुका... अब तो बस बोलने का नाम लेना है, काम तो नहीं होता। 😒
Harsh Bhatt
हमारी संस्कृति में तो महिला का स्थान देवी के रूप में है, लेकिन जब वो फिल्मों में काम करती है तो वो भी एक वस्तु बन जाती है। ये विरोधाभास हमारे आत्म-अपमान का परिणाम है। अगर हम अपने अंदर के दुष्ट को नहीं पहचानते, तो बाहर का कोई नहीं बदलेगा।
Anuj Tripathi
अरे भाई ये तो बस इतना है कि अगर तुम लड़की हो तो तुम्हारी इज्जत तुम्हारे लिए नहीं बल्कि तुम्हारे बॉस के लिए होती है... अब तो सब जानते हैं लेकिन कोई नहीं बोलता क्योंकि अगर बोलेगा तो ब्लैकलिस्ट हो जाएगा। अब ट्रिब्यूनल बनाना शुरू कर दो और देखो कौन बचता है 😅
Avinash Shukla
मुझे लगता है कि ये सिर्फ फिल्म उद्योग की समस्या नहीं है... ये तो हमारे समाज की गहरी बीमारी है। हम लड़कियों को घर में देवी बनाते हैं, लेकिन जब वो बाहर जाती हैं तो उनके साथ ऐसा व्यवहार करते हैं जैसे वो किसी बाजार की चीज़ हों। बदलाव शुरू होना चाहिए घर से... बच्चों को सिखाना चाहिए कि इंसान इंसान के लिए नहीं, बल्कि इंसान इंसान के लिए है। 🙏
Mallikarjun Choukimath
एक निर्माता के रूप में मैं इस रिपोर्ट को पढ़कर शर्मिंदा हुआ। हमने जो सांस्कृतिक अहंकार बनाया है, वह अब हमारे आत्म-विनाश का कारण बन गया है। फिल्म उद्योग ने न केवल कला को बेच दिया, बल्कि मानवीय आदर्शों को भी बेच दिया। अगर हम वास्तविकता को देखने के बजाय नाटकीय बाहरी छल को बनाए रखेंगे, तो यह उद्योग अपने आप में ही एक अंतर्निहित विकृति बन जाएगा। जिस तरह से वास्तविकता को छिपाया जाता है, उसी तरह से हम अपने अंतर्मन को भी छिपा रहे हैं।
Abhishek Abhishek
अरे ये तो सब बकवास है। जब तक लड़कियां खुद अपनी जगह बनाने की कोशिश नहीं करेंगी, तब तक कोई नहीं बदलेगा। ये सब ट्रिब्यूनल बनाने की बातें तो बस एक धोखा है।
Hiru Samanto
मैंने एक बार शूटिंग पर एक लड़की को देखा था जो बारिश में खुले में बैठी थी क्योंकि शौचालय बंद था... उसकी आंखों में बस एक अपराध की भावना थी। अगर हम इसे बदलना चाहते हैं तो पहला कदम ये होना चाहिए कि हम इसे देखें और बोलें। धन्यवाद रिपोर्ट के लिए।