जब दुर्गा नवत्री, एक प्रमुख हिन्दू त्यौहार है जिसमें माँ दुर्गा की नौ रूपों की पूजा की जाती है. Also known as नवदुर्गा, it brings families together for nine nights of devotion, music, and feasting. हर साल अक्टूबर‑नवम्बर में नौ दिन चलने वाला यह त्यौहार भारत के कई हिस्सों में खास अंदाज़ में मनाया जाता है। दुर्गा नवत्री के दौरान लोग घर‑घर में दुर्गा पूजा, माँ दुर्गा को सम्मानित करने की मुख्य रीतियों में से एक है करती हैं, जहाँ ध्वजा, शैल, और मांडप की सजावट देखने लायक होती है। त्यौहार की शुरुआत नवदुर्गा व्रत, नवदुर्गा के नौ दिनों तक रखा गया विशेष उपवास है से होती है, जिसमें महिलाएँ शुद्ध भोजन, शुद्ध विचार और भक्ति को साथ लेकर चलती हैं। अष्टमी को विशेष महत्व दिया जाता है; अष्टमी, नवदुर्गा के आठवें दिन का पर्व है जिसमें माँ दुर्गा के शक्ति रूप की पूजा की जाती है पर विशेष दान और दैत्य पर विजय की कथा सुनाई जाती है। इसके बाद शैलपूजा, पहाड़ या शैल की पूजा को कहा जाता है, जो दुर्गा शक्ति की शक्ति को दर्शाता है की रीति भी जोड़ी जाती है, जिससे त्यौहार का आध्यात्मिक प्रभाव और गहरा हो जाता है।
इतने सारे रिवाज़ों के बीच सबसे दिलचस्प भाग है भक्ति गीत और कथा। घर‑घर में गाए जाने वाले भजन, “काड़िया” और “दुर्गे स्तुति” लोगों को उत्साह से भर देते हैं। विशेष रूप से अष्टमी के बाद के दिन “कावखा” गाने की परम्परा है, जहाँ महिलाएँ अपने घर के आँगन में धूप की किरन में खड़े होकर देवी के गौरव गान करती हैं। इस दौरान “जगन्नाथ” की लोटा और “रक्त दान” जैसी सामाजिक कार्य भी होते हैं, जिससे समुदाय में सहयोग की भावना पैदा होती है। साथ ही, दिवाली से कुछ दिन पहले “भोग” की तैयारी शुरू हो जाती है; मिठाई, रसम, और स्नैक्स का विशेष क्रम गढ़ा जाता है, जिससे श्राव्य और स्वाद दोनों ही रंग भर देते हैं। बच्चों के लिए “पुजा का सामान” बनाना एक मज़ेदार सीख है, जहाँ वे रंगोली बना कर, छोटा‑छोटा दीया सजाते हैं और माँ दुर्गा की आकृति को कागज़ पर तैयार करते हैं। यह प्रक्रिया न केवल रचनात्मकता को बढ़ावा देती है बल्कि परम्पराओं का हाथ‑से‑हाथ पासा भी बनाती है।
परिवारों के लिए दुर्गा नवत्री सिर्फ पूजा‑पाठ नहीं, बल्कि सामाजिक जुड़ाव का मंच भी है। दादी‑दादा के अनुभव, छोटी‑बच्चों की उछाल, और युवा पीढ़ी की नई तकनीक मिलकर एक समृद्ध माहौल बनाते हैं। कई शहरों में ‘महाबली’ की शोभा देखने के लिए स्थानीय मंडलियां भव्य परेड लगाती हैं, जहाँ माँ दुर्गा की मूर्तियों को सजे‑सँवारे रथ पर ले जाया जाता है। इस प्रक्रिया में अक्सर स्थानीय कारीगरों की कुशलता दिखती है; मिट्टी, धातु, और लकड़ी के काम को मिलाकर मोहक आकृतियां तैयार की जाती हैं। इस उत्सव में ‘पारम्परिक वस्त्र’ भी महत्वपूर्ण होते हैं—महिलाएँ किन्वा साड़ी, पुरुष धोती‑कुर्ता पहनते हैं, जिससे रंग‑बिरंगी थ्रेड्स को देखने में एक विशेष आनंद मिलता है।
डिजिटल युग ने भी दुर्गा नवत्री को नया रूप दिया है। सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर जन्मे लघु‑वीडियो, Instagram स्टोरीज़, और YouTube पर लाइव प्रसारण के जरिए दूर‑दराज़ घरों को भी इस उत्सव में भागीदार बनाया जा रहा है। कई मंदिरों ने ऑनलाइन ‘दुर्गा दर्शन’ की सुविधा तैयार की है, जहाँ श्रद्धालु अपने मोबाइल पर माँ दुर्गा को देख सकते हैं। साथ ही, विभिन्न ऐप्स ने व्रत‑रहस्य, फिरोज़ी‑भोजन, और पूजा‑सूत्रों का डिजिटल गाइड प्रदान किया है, जिससे नई पीढ़ी भी पारम्परिक ज्ञान को आसानी से समझ पाती है। इस तरह तकनीक ने रिवाज़ों को सुलभ बनाया है, परन्तु मूल भावना वही रहती है‑भक्ति, एकता, और सकारात्मक ऊर्जा।
नवत्री के अंत में ‘विदाई’ या ‘अवसर’ की बात आती है। दशहरा के दिन, जब दुर्गा की प्रतिमा को फिर से समुद्र में विसर्जित किया जाता है, तो यह शक्ति के प्रवाह को दर्शाता है। इस क्रम में लोग जल‑संरक्षण, पर्यावरण‑सजगता, और सामाजिक सेवा के वादे लेते हैं। इस तरह दुर्गा नवत्री न केवल व्यक्तिगत शुद्धि बल्कि सामुदायिक जागरूकता का भी प्रतीक बन जाता है। अब आप इस पेज पर आगे आने वाले लेखों में इस त्यौहार के विभिन्न पहलुओं—इतिहास, रीति‑रिवाज, आधुनिक अनुभव, और व्यावहारिक टिप्स—के बारे में गहराई से पढ़ेंगे। इन जानकारी से आप अपनी अगली दुर्गा नवत्री को और भी ख़ास बना सकते हैं।
चैत्र नवत्री 2025 का आरम्भ 30 मार्च को हुआ और यह 7 अप्रैल तक चलता है। नौ दिनों में माँ दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा, अष्टमी की विशिष्ट महत्वता, रंग‑रिवाज़ और राम नवमी पर विशेष विवरण दिया गया है। इस लेख में तिथियों, विधियों और शरद नवत्री से अंतर को सरल भाषा में समझाया गया है।