जब भी आप बैंक में खाता खोलते या लोन लेते हैं, तो सबसे पहले आपको ब्याज दर के बारे में पूछना पड़ता है. सरल शब्दों में कहा जाए तो ब्याज दर वह प्रतिशत है जो आपका पैसा उधार लेने पर या जमा करने पर अतिरिक्त मिलती/देनी पड़ती है। हर महीने की बचत, होम लोन, कार लोन और यहां तक कि क्रेडिट कार्ड का बिल भी इसपर निर्भर करता है। इसलिए इसे समझना जरूरी है, खासकर जब आर्थिक माहौल बदल रहा हो।
भारत में ब्याज दरें मुख्य रूप से भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की नीति रेपो रेट पर आधारित होती हैं. अप्रैल 2024 में RBI ने रीपो रेट को 6.50% तक बढ़ाया, जिससे अधिकांश बैंकों की लोन दरें भी ऊपर गईं। इस कदम का मकसद महंगाई को काबू करना था, लेकिन इसका असर आम जनता के खर्चे पर सीधा पड़ता है। अब घर खरीदने वाले लोग 8-9% की दरों से आगे नहीं देख पा रहे हैं, जबकि बचत खातों में मिल रही ब्याज दरें 3.5% के आसपास ही रह गईं।
यदि आप अपने लोन को रीफाइनेंस करना चाहते हैं तो नई नीति का फायदा उठाकर कम रेट वाले बैंकों या NBFCs की पेशकश देख सकते हैं। अक्सर छोटे वित्तीय संस्थान थोड़ी कम ब्याज दरें देते हैं, पर शर्तों को ध्यान से पढ़ना जरूरी है—छिपी हुई फीस या तेज़ी से बढ़ते प्रीपेमेंट चार्ज़ भी हो सकते हैं।
ब्याज दर सिर्फ बड़े लोन तक सीमित नहीं है, यह आपके दैनिक जीवन में कई रूपों में दिखती है। क्रेडिट कार्ड की वार्षिक प्रतिशत दर (APR) अगर 24% हो तो एक महीने में केवल ₹10,000 खर्च करने पर लगभग ₹200 अतिरिक्त देना पड़ता है। इसी तरह, फिक्स्ड डिपॉज़िट की ब्याज दरें गिरने से आपके निवेश का रिटर्न कम हो जाता है। इसलिए बचत खाते और FD दोनों को तुलना करना चाहिए—कभी‑कभार छोटे बैंकों या डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म बेहतर रेट दे सकते हैं।
एक आसान तरीका यह भी है कि आप अपने मौजूदा लोन की EMI को ट्रैक करें और अगर ब्याज दर घटती दिखे तो तुरंत बैंक से रीवॉर्स्टिंग का अनुरोध करें। कई बार सिर्फ एक कॉल या ऑनलाइन फ़ॉर्म भरना पर्याप्त होता है, और इससे आपका मासिक बोझ काफी कम हो सकता है।
सारांश में कहा जाए तो ब्याज दर हर वित्तीय निर्णय को प्रभावित करती है—चाहे वो घर खरीदना हो, कार लेना हो, या सिर्फ रोज़ की बचत। RBI की नीति बदलती रहती है, इसलिए नियमित रूप से अपडेट पढ़ते रहिए और अपने पैसे के लिए सबसे बेहतर विकल्प चुनें। शौर्य समाचार पर आप ऐसी ही ताज़ा जानकारी पाते रहेंगे, जिससे वित्तीय फैसले आसान बनेंगे।
जनवरी 2025 में फेडरल रिजर्व की बैठक के बाद यह पहली बार था कि ब्याज दरों में कोई कटौती नहीं की गई। फेडरल रिजर्व के अध्यक्ष जेरोम पॉवेल का कहना है कि यह निर्णय पिछले कटौतियों के प्रभाव का आकलन करने के लिए रुका है। हालांकि, यह भविष्य की कटौतियों के समाप्त होने का संकेत नहीं है। निर्णय आर्थिक विकास और मुद्रास्फीति पर फेडरल रिजर्व की सतर्कता को दिखाता है।
अमेरिकी फेडरल रिजर्व 18 सितंबर को अपने मौद्रिक नीति निर्णय की घोषणा करेगा, जिसमें बाजार उम्मीदें 25-बेसिस पॉइंट की कटौती पर केंद्रित हैं, जो मार्च 2020 के बाद से पहली दर कटौती होगी। प्रमुख बहस 25 बेसिस पॉइंट्स या 50 बेसिस पॉइंट्स पर है। 25-बेसिस पॉइंट की कटौती बाजार में पहले से ही फैक्टर की गई है, जबकि कुछ विश्लेषक चेतावनी दे रहे हैं कि 50-बेसिस पॉइंट की कटौती आर्थिक स्वास्थ के बारे में नकारात्मक संकेत दे सकती है।